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Monday, 1 July 2013

WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

ये सब ख़्याल ही तो है…


कभी तैरकर जाना है,सीमाओ के पार,
उड़ना है नीलगगन में,अपने पंख पसार,
ख़ुद से लिखना है,अपनी किस्मत एक बार,
कामयाबी और किस्मत,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

ये मन न जाने कैसे-कैसे शब्दों को सुन लेता है,
तीव्र गति से,सपनो का कोई नीड़ बुन लेता है,
अनायास ही सबसे लम्बी-तिरछी वीथिका चुन लेता है,
स्वप्न और सुनहरी राहें ,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

उन्मुक्तता की चाह,मन को विचलित कर जाती है,
मुक्त नहीं रह पाओगे,आवाज़ कोई बतलाती है,
हर छन पर कोई घटना,फिर से स्मरण कराती है,
उन्मुक्तता और स्वाधीनता,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

विश्वास बनाकर मुझको,सदा ऐसे ही रहना है,
पवन  संग लहराना है,लहरों के संग बहना है,
पर न जाने क्यों अब,अंतर्मन का कहना है,
विश्वास और लहरे,
ये सब ख़याल है,और तुम,खो चुके हो।

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