पगडण्डी
सीधे-तिरछे ,ऊँचे-निचे,
जीवन के ये रस्ते सारे,
मन-से मन को समझाते हैं,
हार न जाना,ओ!मन प्यारे,
लड़खड़ाते हुए कदम पड़ते है,
मन के डर से हम लड़ते है,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर ।
निराशाओ के बढ़ते साये,
जीवनदीपो को ढँक लेते है,
इन अंधेरो में छुपने पर भी,
ये नैन ,हमें क्यों तक लेते है,
हर सच अब जहर लगता है,
इन अंधेरो से डर लगता है,
पर पास नहीं बाती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।
बस अपनी आहट सुन सकता हूँ,
एक मकड़जाल-सा बुन सकता हूँ,
हार,निराशा,दोनों समक्ष हैं,
मैं जिसको चाहे,चुन सकता हूँ,
कहीं कोई आवाज़ तो आए ,
मेरे दिल को कुछ बहलाए,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।
सीधे-तिरछे ,ऊँचे-निचे,
जीवन के ये रस्ते सारे,
मन-से मन को समझाते हैं,
हार न जाना,ओ!मन प्यारे,
लड़खड़ाते हुए कदम पड़ते है,
मन के डर से हम लड़ते है,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर ।
निराशाओ के बढ़ते साये,
जीवनदीपो को ढँक लेते है,
इन अंधेरो में छुपने पर भी,
ये नैन ,हमें क्यों तक लेते है,
हर सच अब जहर लगता है,
इन अंधेरो से डर लगता है,
पर पास नहीं बाती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।
बस अपनी आहट सुन सकता हूँ,
एक मकड़जाल-सा बुन सकता हूँ,
हार,निराशा,दोनों समक्ष हैं,
मैं जिसको चाहे,चुन सकता हूँ,
कहीं कोई आवाज़ तो आए ,
मेरे दिल को कुछ बहलाए,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।
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