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Friday, 5 July 2013

WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

.....दबाकर कोई कफ़न जाए ।


मुझे डर है,कि बातों से,
कहीं बातें,ना बन जाए ,
थी सालो में,रखी जो नींव,
उसे खुद से,ना खन जाये।


कभी कल  तक,जो रूठा दिल,
मनाते थे,कई साथी,मेरे अपने,
अभी  लगता है,कि रूठा दिल,
कहीं खुद से ही,ना मन जाये।


जब कभी सोचा,कि जाँ दे दूँ ,
ये मन था ,कि जो डरता था,
पर लगता है,आज यहाँ,
मेरी मन से,ना  ठन जाए ।


हमेशा ही, रुके थे हम,
मंजिल की झलक पाने को,
आज फिर से,मेरे ये दिन,
कहीं रातें,ना बन जाये।


मेरी निष्ठा है, उन ईंटो से,
जिनसे घर की,दीवारें बनती है,
भले उनके तले, कल को,
दबाकर कोई कफ़न जाये।


रगों में लहू,नहीं है अब,
आक्रोश भरा है,नस-नस में,
बिना चाहे,कहीं खूं  से,
मेरे ये हाथ,ना सन जाये।


Monday, 1 July 2013

WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

रात को चाँद दिखाना मत !

दर्द हो अब गहरा कितना भी,
पर जख्म कभी दिखलाना मत।
चुपकर दिल को बहला लेना,
पर गीत कोई अब गाना मत।

जीवन की अँधेरी गलियों में,
बीती  यादों से टकराना मत।
दिन में तारें बहुत दिखे है,
रात को चाँद दिखाना मत।

अक्स तेरा तुझसे शरमाये,
कुछ करने से शर्माना मत।
नापाक हो अब कितना भी दामन,
मंदिर-मस्जिद जाना मत।

मौत की धुन पर सुलाकर जाना,
पर जीवन-राग सुनाना मत।
झूठ में चैन मिला है दिल को,
दिल तोड़के सच कह जाना मत।

WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

सत्य का आत्मविश्लेषण


सत्य को सत्य सा,
प्रकाश  को प्रकाश सा,
मिला  कोई तो लगता है,
मन है कुछ उदास-सा।

अपने महत्व की खोज में,
सत्य को सत्य मिले तो,
महत्व तो घट ही जाता है,
बचता है कुछ प्यास-सा।

महत्व अपना खोकर के,
सत्य खुश तो नहीं हुआ,
मन मसोसकर पड़ा है ,
चलो,जो हुआ,सही हुआ।

मुझसे उत्कृष्ट है कही,
जिसका अब उद्भव हुआ,
लगता है इसको ही,
कहते है कुछ विकास-सा।

समक्ष जब अनृत ही था,
मान सबने मुझे ही दिया,
वहाँ स्वयंसिद्ध उच्चता में,
विनम्र होकरके रह लिया।

अब श्रेष्ठ सम्मुख है तो,
विनम्रता नैसर्गिक नहीं है,
सहज ही विनम्र रहने को,
करना पड़ेगा कुछ प्रयास-सा।

मुझे छोड़ अपनाना इसको,
ये  नया एक दौर होगा,
मैं मिटूँगा ,मैं हटूँगा,
कोई नया सिरमौर होगा।

उपेक्षित होना किसी मोड़पर,
ये भी तो एक प्रक्रिया है,
बनकर रहूँगा फिर वही,
जिसको कहते है,इतिहास-सा।

पर कभी जब बात होगी,
यहाँ तक कैसे आये,
मेरा भी प्रसंग उठेगा,
इसने नए,मार्ग बनाये।

मेरा जो भी योगदान है,
वह होगा स्मृतियों में,
मैं सतत जीवित हो उठूँगा,
है मुझको कुछ विश्वास-सा।



WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

ये सब ख़्याल ही तो है…


कभी तैरकर जाना है,सीमाओ के पार,
उड़ना है नीलगगन में,अपने पंख पसार,
ख़ुद से लिखना है,अपनी किस्मत एक बार,
कामयाबी और किस्मत,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

ये मन न जाने कैसे-कैसे शब्दों को सुन लेता है,
तीव्र गति से,सपनो का कोई नीड़ बुन लेता है,
अनायास ही सबसे लम्बी-तिरछी वीथिका चुन लेता है,
स्वप्न और सुनहरी राहें ,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

उन्मुक्तता की चाह,मन को विचलित कर जाती है,
मुक्त नहीं रह पाओगे,आवाज़ कोई बतलाती है,
हर छन पर कोई घटना,फिर से स्मरण कराती है,
उन्मुक्तता और स्वाधीनता,
ये सब ख़्याल ही तो है,इन्हें खो जाने दो।

विश्वास बनाकर मुझको,सदा ऐसे ही रहना है,
पवन  संग लहराना है,लहरों के संग बहना है,
पर न जाने क्यों अब,अंतर्मन का कहना है,
विश्वास और लहरे,
ये सब ख़याल है,और तुम,खो चुके हो।

WAQT MERA AZAAD NAHI HAI

पगडण्डी


सीधे-तिरछे ,ऊँचे-निचे,
जीवन के ये रस्ते सारे,
मन-से मन को समझाते हैं,
हार न जाना,ओ!मन प्यारे,
लड़खड़ाते हुए कदम पड़ते है,
मन के डर  से हम लड़ते है,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर ।


निराशाओ के बढ़ते साये,
जीवनदीपो को ढँक लेते है,
इन अंधेरो में छुपने पर भी,
ये नैन ,हमें क्यों तक लेते है,
हर  सच अब जहर लगता है,
इन अंधेरो से डर लगता है,
पर पास नहीं बाती  है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।


बस अपनी आहट सुन सकता हूँ,
एक मकड़जाल-सा बुन सकता हूँ,
हार,निराशा,दोनों समक्ष  हैं,
मैं जिसको चाहे,चुन सकता हूँ,
कहीं कोई आवाज़ तो आए ,
मेरे दिल को कुछ बहलाए,
पर आवाज़ नहीं आती है कोई,
जीवन की इस पगडण्डी पर।