.....दबाकर कोई कफ़न जाए ।
मुझे डर है,कि बातों से,
कहीं बातें,ना बन जाए ,
थी सालो में,रखी जो नींव,
उसे खुद से,ना खन जाये।
कभी कल तक,जो रूठा दिल,
मनाते थे,कई साथी,मेरे अपने,
अभी लगता है,कि रूठा दिल,
कहीं खुद से ही,ना मन जाये।
जब कभी सोचा,कि जाँ दे दूँ ,
ये मन था ,कि जो डरता था,
पर लगता है,आज यहाँ,
मेरी मन से,ना ठन जाए ।
हमेशा ही, रुके थे हम,
मंजिल की झलक पाने को,
आज फिर से,मेरे ये दिन,
कहीं रातें,ना बन जाये।
मेरी निष्ठा है, उन ईंटो से,
जिनसे घर की,दीवारें बनती है,
भले उनके तले, कल को,
दबाकर कोई कफ़न जाये।
रगों में लहू,नहीं है अब,
आक्रोश भरा है,नस-नस में,
बिना चाहे,कहीं खूं से,
मेरे ये हाथ,ना सन जाये।
मुझे डर है,कि बातों से,
कहीं बातें,ना बन जाए ,
थी सालो में,रखी जो नींव,
उसे खुद से,ना खन जाये।
कभी कल तक,जो रूठा दिल,
मनाते थे,कई साथी,मेरे अपने,
अभी लगता है,कि रूठा दिल,
कहीं खुद से ही,ना मन जाये।
जब कभी सोचा,कि जाँ दे दूँ ,
ये मन था ,कि जो डरता था,
पर लगता है,आज यहाँ,
मेरी मन से,ना ठन जाए ।
हमेशा ही, रुके थे हम,
मंजिल की झलक पाने को,
आज फिर से,मेरे ये दिन,
कहीं रातें,ना बन जाये।
मेरी निष्ठा है, उन ईंटो से,
जिनसे घर की,दीवारें बनती है,
भले उनके तले, कल को,
दबाकर कोई कफ़न जाये।
रगों में लहू,नहीं है अब,
आक्रोश भरा है,नस-नस में,
बिना चाहे,कहीं खूं से,
मेरे ये हाथ,ना सन जाये।